गणेश चतुर्थी मनाने का कारण

Author avatarSuresh
27 अगस्त, 2024
गणेश चतुर्थी मनाने का कारण

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यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र व कर्नाटका में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान श्री गणेश जी का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है।


गणेश चतुर्थी एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जो भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता (बाधाओं को दूर करने वाला) और शुभारंभ के देवता माना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय हैं।

गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है?

  1. भगवान गणेश का जन्म: गणेश चतुर्थी का मुख्य कारण भगवान गणेश के जन्म का उत्सव है। भगवान गणेश, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। उनकी बुद्धिमत्ता, ज्ञान और बाधाओं को दूर करने की शक्ति के कारण उन्हें विशेष रूप से पूजा जाता है।
  2. नए कार्यों की शुरुआत: भगवान गणेश को नए कार्यों की शुरुआत से पहले पूजा जाता है। उनकी कृपा से किसी भी नए कार्य में सफलता मिलती है, इसलिए गणेश चतुर्थी को शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए आदर्श समय माना जाता है।
  3. सांस्कृतिक महत्व: गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व महाराष्ट्र में है, जहां इसे सदियों से मनाया जा रहा है। 19वीं सदी के अंत में, स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने इसे एक सार्वजनिक उत्सव में बदल दिया, ताकि लोग एकजुट होकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले सकें।
  4. सामुदायिक एकता: इस त्योहार से लोगों के बीच सामुदायिक भावना बढ़ती है। लोग बड़े-बड़े गणेश मूर्तियों की स्थापना करते हैं और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जैसे संगीत, नृत्य और नाटक।
  5. आध्यात्मिक शुद्धिकरण: गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व भी है। माना जाता है कि इस समय भगवान गणेश पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों को समृद्धि, ज्ञान और खुशी प्रदान करते हैं। उत्सव के अंत में गणेश मूर्तियों का विसर्जन जीवन की अस्थिरता और पुनर्जन्म के चक्र का प्रतीक है।

उत्सव कैसे मनाया जाता है?

गणेश चतुर्थी का त्योहार आमतौर पर 10 दिनों तक चलता है। इसमें गणेश की मिट्टी की मूर्तियों की स्थापना घरों या सार्वजनिक पंडालों में की जाती है। भक्त गणेश जी की पूजा करते हैं, भजन गाते हैं और मोदक जैसे उनके पसंदीदा मिठाइयों का भोग लगाते हैं। अंत में, मूर्तियों का जल में विसर्जन किया जाता है।