गणेश चतुर्थी की कथा

Author avatarSuresh
30 August, 2024
गणेश चतुर्थी की कथा

गणेश चतुर्थी की कथा भगवान गणेश के जन्म पर आधारित है, जिन्हें देवी पार्वती ने अपनी रक्षा के लिए बनाया था। जब गणेश ने भगवान शिव को अंदर जाने से रोका, तो शिव ने क्रोधित होकर उनका सिर काट दिया। देवी पार्वती के दुख को देखकर, शिव ने गणेश को हाथी का सिर लगाकर पुनर्जीवित किया, जिससे वे गजानन बने। शिव और पार्वती ने गणेश को आशीर्वाद दिया और उन्हें प्रथम पूज्य देवता घोषित किया। इसी घटना ने गणेश चतुर्थी के उत्सव की नींव रखी, जो भक्ति, बुद्धिमत्ता और समृद्धि का पर्व है।


गणेश चतुर्थी की कथा हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह कथा भगवान गणेश के जन्म और उनसे जुड़े कई रहस्यमय और रोचक घटनाओं के बारे में बताती है। आइए इस कथा को विस्तार से समझते हैं:

 भगवान गणेश का जन्म:

भगवान गणेश का जन्म देवी पार्वती और भगवान शिव के पुत्र के रूप में हुआ था। कथा के अनुसार, एक दिन देवी पार्वती स्नान करने जा रही थीं और उन्होंने अपनी रक्षा के लिए किसी को नहीं पाया। इसलिए, उन्होंने अपने शरीर के उबटन (चंदन और हल्दी के लेप) से एक मूर्ति बनाई और उसमें प्राण फूंक दिए। इस प्रकार, गणेश का जन्म हुआ और उन्होंने उन्हें अपना पुत्र बना लिया। 

 शिव और गणेश का टकराव:

जब देवी पार्वती स्नान कर रही थीं, तो उन्होंने गणेश को दरवाजे पर पहरा देने का आदेश दिया। उसी समय, भगवान शिव वहां पहुंचे और उन्होंने अंदर जाने की कोशिश की। लेकिन गणेश ने उन्हें रोका क्योंकि वह अपनी माँ के आदेश का पालन कर रहे थे। भगवान शिव ने कई बार गणेश को समझाने की कोशिश की, लेकिन गणेश ने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए उन्हें अंदर जाने नहीं दिया।

 गणेश का सिर कटना:

गणेश की इस दृढ़ता से भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया। जब देवी पार्वती ने यह देखा, तो वह अत्यंत दुखी हो गईं और उन्होंने शिव से गणेश को जीवित करने का अनुरोध किया। पार्वती का दर्द देखकर, भगवान शिव ने गणेश को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया।

 हाथी का सिर:

भगवान शिव ने अपने अनुचरों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाएं और पहले जीवित प्राणी का सिर लाएं। अनुचरों को सबसे पहले एक हाथी का सिर मिला, जिसे वे शिव के पास ले आए। भगवान शिव ने उस हाथी के सिर को गणेश के शरीर से जोड़ दिया और उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। इस प्रकार गणेश को हाथी का सिर प्राप्त हुआ और वे "गजानन" के रूप में जाने गए।

 गणेश को प्रथम पूज्य का स्थान:

गणेश के पुनर्जीवन के बाद, भगवान शिव और देवी पार्वती ने गणेश को आशीर्वाद दिया और कहा कि गणेश को सभी देवताओं में प्रथम पूज्य का स्थान प्राप्त होगा। इसका अर्थ है कि किसी भी शुभ कार्य या पूजा के प्रारंभ में सबसे पहले गणेश की पूजा की जाएगी। 

 शिव-पार्वती की प्रसन्नता:

गणेश के पुनर्जीवित होने और उनके प्रथम पूज्य बनने से देवी पार्वती और भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। इस घटना के बाद, गणेश चतुर्थी का त्योहार भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाने लगा, जहां गणेश की मूर्ति की स्थापना कर उनकी पूजा की जाती है।

 अन्य कथाएँ:

- गणेश की परिक्रमा: एक अन्य कथा में, भगवान गणेश और उनके भाई कार्तिकेय के बीच दुनिया की परिक्रमा करने की प्रतियोगिता हुई। गणेश ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए अपने माता-पिता (शिव और पार्वती) की परिक्रमा की, क्योंकि वे ही उनके लिए सम्पूर्ण संसार थे। इस बुद्धिमत्ता के कारण गणेश विजयी घोषित हुए।

- गणेश और महाभारत: गणेश को महाभारत के लेखक के रूप में भी माना जाता है। कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी को महाभारत लिखने के लिए कहा था। गणेश ने एक शर्त रखी कि वे बिना रुके लिखेंगे, और यदि वे रुकेंगे, तो वे लिखना बंद कर देंगे। वेदव्यास ने यह शर्त स्वीकार की और गणेश ने महाभारत को लिखा।

गणेश चतुर्थी की यह कथा हमें भगवान गणेश की महिमा, उनकी बुद्धिमत्ता, और उनकी विशेषताओं के बारे में बताती है। यह त्योहार भगवान गणेश के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, और इसे पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।